भारतीय महिलाओं की बदलती स्थिति




मैं अपने इस ब्लॉग के द्वारा भारतीय महिलाओं की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की दशा पर प्रकाश डालना अपना परम कर्त्तव्य समझता हूँ. स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व तथा काफी वर्षों तक भारतीय समाज में विशेषकर भारतीय गाँवों में खास ध्यान नहीं दिया जाता था. शहरों में भी पढ़े-लिखे परिवारों को छोड़कर उनके हालत की तरफ विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था.

महिलओं को केवल घर की देखभाल के ही योग्य समझा जाता था. अधिकतर परिवारों में केवल बालकों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूलों में भेजा जाता था. लेकिन धीर-धीर यहाँ के नागरिकों को उनकी दशा सुधारने का ख्याल आया तथा उन्होंने समझा कि घर की लड़कियों को भी शिक्षा प्राप्त करने के सुव-अवसर प्रदान करने चाहिए. उसके बाद घर की लड़कियों को भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजना प्रारंभ कर दिया.

आज जो बालिकाएं पढाई-लिखाई में खूब मन लगा रही हैं वे इसी सोच का परिणाम है. कुछ वर्ष के अंतराल के बाद पढाई पूरी करने के बाद घर के बाहर जाकर नौकरी करना प्रारंभ किया तथा अपने गृह-जनपद के बाहर जाना स्वीकार किया.

सर्वप्रथम पढ़ी-लिखी महिलाओं ने केवल अध्यापिका का पद स्वीकार किया. उसके बाद जीवन के हर क्षेत्र राजनीति, सेना आदि में जाना भी प्रारंभ किया. हमारे देश में सरोजनी नायडू, सुषमा स्वराज, मायावती, स्मृति रानी, निर्मला सीतारमण आदि इसके ज्वलंत उदाहरण हैं. I.A.S आदि में भी देश का नाम रोशन किया. आज भारतीय महिलाऐं सभी उन क्षेत्रों में जिनपर केवल पुरुषों का वर्चस्व था अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़ना प्रारंभ कर दिया. पुरुषों के कन्धे से कन्धा मिलाकर नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहीं हैं. बैंकों की अध्यक्ष आदि महतवपूर्ण पदों पर कई महिलाएं हैं. इस ब्लॉग में उन सभी का जिक्र करना संभव नहीं है.

हमारा देश नारी-शक्ति को दिन-प्रतिदिन बढ़ावा दे रहा है. अभी कुछ दिन पूर्व उच्चतम न्यायलय ने अपने निर्णय में कहा है कि महिलाओं को सेना में ‘शोर्ट सर्विस कमीशन’ देने के बजाय परमानेंट कमीशन देना स्वीकार किया है. ये एक अभूतपूर्व फैसला है जो उनकी काबिलियत में चार-चाँद लगाएगा.

Comments

Popular posts from this blog

Teachings of “Swami Vivekananda”

NIOS: हाई स्कूल परीक्षा में गणित का अनिवार्य न होना

960 Foreigners Registered In Black-List