60 रुपये रोज़ पर मजदूरी करने वाले

 



आपको अपने देश के गावों में ऐसे गैर-खेतिहर दिहाड़ी मजदूर मिल जायेंगें जिन्हें आज के युग में मात्र 60 रूपये रोज़ पर खेतों पर काम करने पर मजदूरी मिलती है. समय के हाथों में मजदूर मज़बूरी में 60 रूपये रोज़ पर गावों के खेतों पर मजदूरी करने को मजबूर होते हैं.

इसके पहले जब तक भारतीय गावं में जमीदारी प्रथा लागू थी, मजदूरों को जमीदारों द्वारा नकद मजदूरी नहीं दी जाती थी. उनसे बेकार में काम कराया जाता था. जब बेचारा मजदूर अपने मजदूरी मांगता था तो उसे तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता था. कोई-कोई जमींदार उनकी हालत पर दया करके कुछ अनाज दे देता था जिससे बेचारा मजदूर किसी तरह अपना तथा अपने परिवार का पेट भरता था. जमींदार अपने यहाँ लठैत रखते थे जो जमींदारों के कहने पर मजदूरों पर तरह-तरह के जुल्म ढाते थे.

वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा योजना के आ जाने से मजदूरों को काफी राहत मिली है. इस योजना से सरकार उन्हें न्यूनतम मजदूरी की गारंटी देती है. जबसे केंद्र तथा कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें आयीं हैं दिन-प्रतिदिन उनके कल्याण के लिए नयी-नयी योजनायें बनाई जा रही हैं.

अपने परिवार की रोज़ की आवश्कताओं की पूर्ती के लिए कहीं-कहीं बेचारा मजदूर 60 रूपये जैसी कम मजदूरी पर काम करने के लिए विवश होता है. जिन-जिन गावं के प्रधान अच्छे हैं वे गैर-खेतिहर मजदूरों की हालत के प्रति बहुत जागरूक रहते हैं.

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