हिंसा

 


प्रत्येक सुबह-सवेरे हम दैनिक समाचार पत्र के पृष्ठ पलटते हैं तो वो हिंसा की तमाम ताज़ा ख़बरों से भरे रहते हैं. कहीं किसी को असमय गला घोंट कर मार डाला गया. कहीं किसी अकेले वृद्ध की घर पर हत्या कर दी गयी आदि.

महात्मा गाँधी जी की अनमोल सीख यानि हिंसा छोड़ो, अहिंसा अपनाओ को देश के अधिकतर निवासी भुला बैठे हैं. क्या कभी किसी ने सोचा है कि अधिकतर मनुष्य हिंसक क्यों होते जा रहे हैं? इसके कई कारण हो सकते हैं लेकिन यहाँ हम मुख्य कारण जिससे हिंसा को बढ़ावा मिलता है वो सिने-निर्माताओं द्वारा जैसी फिल्मों का निर्माण किया जाता है जिसमें अधिक हिंसात्मक दृश्य दिखाए जाते हैं इन्हीं के कारण देश के लोग हिंसा में अधिक सक्रिय हो जाते हैं. जब देश के लोग इन निर्माताओं से प्रश्न करते हैं कि आप लोग तमाम सामाजिक विषयों पर फ़िल्में बनाते हैं तो उनमें हिंसा पर ही अधिक ध्यान क्यों केन्द्रित करते हैं. आपकी हिंसात्मक फिल्मो को देखकर देश का युवा वर्ग अपने असली जीवन में भी हिंसा को अपनाने लगता है. इसपर इन निर्माताओं का सीधा-सपाट उत्तर होता है कि हम अपनी फिल्मो में उसी कहानी को दिखाते हैं जो आजकल समाज में हो रहा है.

इस विषय पर मेरा विचार है कि समाज में जो घटित हो रहा है वो न दिखाकर अच्छे आदर्श के बारे में दिखाया जाये. इससे हमारे देश का युवा वर्ग दिग्भ्रमित नहीं होगा. इसके अलावा देश में आध्यात्म को अधिक बढ़ावा दिया जाये जिससे लोग अच्छे रास्तों पर चलना सीखा सकें.

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