विवाह के एक वर्ष पश्चात


 

ससुराल में विवाह के एक वर्ष बीत जाने के बाद शादी की वर्षगाँठ बड़े धूमधाम से मनाई जाती है. इसमें वर पक्ष के सभी रिश्तेदार तथा बहू के मायके वालों को आमंत्रित किया जाता है. इसमें शामिल होने के लिए बहू के मायके वालों का बुलाया जाना भी एक अच्छा तथा स्वागत योग्य कदम होता है. बहू के मायके वाले अपनी बेटी के लिए एक अच्छा सा उपहार लेकर अपना आशीर्वाद देने के लिए आते हैं. अन्य रिश्तेदारों तथा मित्रों आदि को भी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर बड़े आदर-सत्कार से बुलाया जाता है. वे भी विभिन्न प्रकार के उपहार लेकर अपना आशीर्वाद देने आते हैं.

शादी के बाद एक वर्ष बिताने के पश्चात विवाहिता को अपने पति तथा घर के अन्य सदस्यों के स्वभाव के बारे में पूरी तरह से पता चल चुका होता है. वो सबकी पसंद तथा नापसंद आदि के बारे में भी अच्छे से जान जाती है. वो अपने को उनके व्यवहार के अनुसार ढालने का प्रयत्न कर चुकी होती है. अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी को सफल बनाने का ये सबसे बड़ा मूलमंत्र है. परिवार को संयुक्त परिवार की तरह चलाना ही अच्छा होता है नाकि उसे तोड़कर एकल परिवार के रूप में चलाना.

संयुक्त परिवार के अनेकों लाभ होते हैं. विवाहिता के ऊपर सदैव बड़े-बुजुर्गों की छाया रहती है तथा उसके बच्चों का अच्छा लालनपालन भी संभव होता है. अगर विवाहिता कामकाजी है तो संयुक्त परिवार होने से उसके बच्चों की देखभाल तथा अन्य जिम्मेदारियों से उसे छुटकारा मिल जाता है. अगर वो सिर्फ गृहणी है तो भी उसे कम जिम्मेदारियों का निर्वहन करना पड़ता है. अगर किसी वजह से परिवार का विघटन होता है यानी अपने पति तथा बच्चों के साथ अलग रहना पड़ता है तो विवाहिता पर मानो पहाड़ ही टूट जाता है तथा घर में कलह तथा क्लेश हो जाता है.

विवाहिता को एक वर्ष के दौरान यथासंभव यही प्रयास करना चाहिए कि उसके दिन-प्रतिदिन के व्यवहार से घर में कोई क्लेश न हो तथा उसे परिवार के हर सदस्य का प्यार मिले तथा आपस में मिलजुल कर रहे. विवाहिता के घर में आने से पहले घर में अगर लोगों का झुकाव आध्यात्म की तरफ कम हो तो उसे इसे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए. मेरा मानना है कि अगर एक घर आध्यात्मिक है तो इससे वातावरण में अधिक सुख-शान्ति रहती है तथा लड़ाई-झगडे की संभावना कम होती है.

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