महिलाओं की नौकरी: शौक या मजबूरी

DFID - UK Department for International Development, CC BY-SA 2.0 <https://creativecommons.org/licenses/by-sa/2.0>, via Wikimedia Commons

 

इसे संपन्न घरों की महिलाओं के एक शौक के रूप में देखा जा सकता है लेकिन मध्यम तथा निम्न वर्ग की महिलाओं का नौकरी करना एक मजबूरी ही होता है. घर में खाना बनाने तथा बर्तन मांजने का काम करने वाली तथा अध्यापिका या कार्यालयों में छोटे पदों पर काम करने वाली महिलाएं अपनी आर्थिक दशा सुधारने के लिए ही नौकरी करती हैं.

कुछ की मजबूरी होती है क्योंकि उनके पति कुछ काम-धंधा नहीं करते, कुछ के पति शराबी तथा जुआरी होते हैं. घर का खर्च ठीक प्रकार से चलाने के लिए उन्हें सेल्स-गर्ल बनकर घर-घर सामान बेचने भी जाना पड़ता है. भला कौन सी महिला चाहेगी कि घर पर काम निबटने के अलावा पूरे शहर में घर-घर दरवाजे खटखटाये, घरों में खाना बनाने या बर्तन मांजने का काम घर की आमदनी बढ़ाने के लिए करे. घर का मुखिया यदि घर के खर्च की जिम्मेदारी निभाये तो एक महिला को मजबूरी में ऐसे काम करने के लिए घर से न निकलना पड़े.

अतैव ये सिद्ध हो गया कि संपन्न घरों की महिलाओं को छोड़कर बाकि अधिकतर महिलाएं मजबूरी में ही घर से बाहर काम करने निकलती हैं.

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