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कशमकश में हैं भगवान्

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  आम आदमी अपने जीवन-काल में कई ऐसे हालातों का सामना करता है जब वो कशमकश में होता है कि वो किस रास्ते को अपनाये या किसकी बात माने या किसकी न माने. सर्वशक्तिमान ईश्वर भी कई हालातों पर कशमकश में होता है कि किस फरियादी की फ़रियाद सुने या न सुने. यहाँ में दो ऐसे हालातों का जिक्र आपके सामने करना चाहता हूँ जहाँ भगवान् वाकई में कशमकश में होता है. पहला जब एक किसान भगवान् से मौसम-बे-मौसम अधिक वर्षा की प्रार्थना करता है. ठीक इसके विपरीत कुम्हार जो मिटटी के बर्तन बनाकर फिर आवें में पकाकर उनकी बिक्री से अपना तथा अपने परिवार का पेट पालता है. वो भगवान् से अक्सर प्रार्थना करता है कि बारिश कम से कम हो. हमेशा तेज़ धूप हो तथा आवें में पकाने के पहले उसके द्वारा बनाये गए बर्तन ठीक से सूख जाएँ. अब बताइए भगवान् किसकी प्रार्थना पर ध्यान दें. अगर वो बारिश कम करता है तो किसान का नुकसान होता है यानी, फसल के लिए कम वर्षा हानिकारक होती है. अगर अधिक पानी बरसाता है तो कुम्हार के बर्तन ठीक से सूख नहीं पाते. दूसरी स्तिथि भगवान् के सामने कशमकश में होने का तब आती है जब किसी परिवार में उनका कोई सगा-सम्बन्धी बीमार होकर

60 रुपये रोज़ पर मजदूरी करने वाले

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  आपको अपने देश के गावों में ऐसे गैर-खेतिहर दिहाड़ी मजदूर मिल जायेंगें जिन्हें आज के युग में मात्र 60 रूपये रोज़ पर खेतों पर काम करने पर मजदूरी मिलती है. समय के हाथों में मजदूर मज़बूरी में 60 रूपये रोज़ पर गावों के खेतों पर मजदूरी करने को मजबूर होते हैं. इसके पहले जब तक भारतीय गावं में जमीदारी प्रथा लागू थी, मजदूरों को जमीदारों द्वारा नकद मजदूरी नहीं दी जाती थी. उनसे बेकार में काम कराया जाता था. जब बेचारा मजदूर अपने मजदूरी मांगता था तो उसे तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता था. कोई-कोई जमींदार उनकी हालत पर दया करके कुछ अनाज दे देता था जिससे बेचारा मजदूर किसी तरह अपना तथा अपने परिवार का पेट भरता था. जमींदार अपने यहाँ लठैत रखते थे जो जमींदारों के कहने पर मजदूरों पर तरह-तरह के जुल्म ढाते थे. वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा योजना के आ जाने से मजदूरों को काफी राहत मिली है. इस योजना से सरकार उन्हें न्यूनतम मजदूरी की गारंटी देती है. जबसे केंद्र तथा कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें आयीं हैं दिन-प्रतिदिन उनके कल्याण के लिए नयी-नयी योजनायें बनाई जा रही हैं. अपने परिवार की रोज़ की

जब कोई आपको देखने आये

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  जब किसी अविवाहित लड़की को वर पक्ष के लोग देखने आयें तो उनके सामने अचानक नहीं आना चाहिए. वर पक्ष वालों के आने के पहले घर को खूब स्वच्छ तथा अच्छा रखना चाहिए. ड्राइंगरूम जहाँ आने वाले अतिथियों का स्वागत किया जाना है उसे सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाना चाहिए तथा नए परदे आदि लगाने चाहिए. प्रकाश व्यवस्था का तथा वाल पेंटिंग वगैरह का ध्यान रखना चाहिए. वर पक्ष वालों के आने के पहले लड़की के माता-पिता या उनके न होने पर बड़े भाई या भाभी यानि जो घर के बड़े बुजुर्ग हों उनके द्वारा वर पक्ष वालों का स्वागत किया जाना चाहिए. जब ये समाचार मिले कि आगन्तुक कक्ष में पधार चुके हैं तो उनके खान-पान का उचित प्रबंध करना चाहिए. घर के बड़े सदस्य के कहने पर लड़की को अपनी माँ, भाभी या ननद के साथ कमरे में नाश्ते की ट्रे लेकर प्रवेश करना चाहिए. उस समय उसको अपनी ड्रेस पर विशेष ध्यान देना चाहिए. ड्रेस अधिक भड़कीली न हो. सलवार-कुर्ते आदि में एक घरेलू लड़की जैसा दिखना चाहिए. आते ही आने वालों का अभिवादन करना चाहिए फिर अपने निहित स्थान पर बैठना चाहिए. चेहरे पर हल्का मेकअप करना चाहिए. वर पक्ष वालों के पूछे गए प्रश्नों का ठीक से उत्तर

इनकम टैक्स बचाने का नायाब तरीका

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                              Attribution:  Alpha Stock Images - http://alphastockimages.com/ Original Author:  Nick Youngson - link to - http://www.nyphotographic.com/ Original Image:  https://www.thebluediamondgallery.com/handwriting/i/income-tax.html Modified by the Author क्या हममे से किसी ने ठंडे दिमाग से इस बात पर विचार किया है कि देश के कुछ पूंजीपति लोग बड़े-बड़े मंदिर तथा धर्मशालाएं क्यों बनवाते हैं? क्यों गर्मियों के दिनों में प्याऊ लगवाते हैं? किसी ने इस राज से कभी पर्दा उठाना उचित नहीं समझा? अक्सर लोग सोचते हैं कि सेठ जी बड़े परोपकारी तथा धार्मिक विचारों के हैं तथा इनकी धर्म तथा ईश्वर में गहरी आस्था है तथा धनवान होने के कारण इनके पास धन की कोई कमी नहीं है इसलिए यह इन नेक कामों पर अपनी कमाई का कुछ हिस्सा ख़ुशी से खर्च करते हैं. मेरे विचार से जनता का यह सोचना कतई ठीक नहीं है. अगर हम गहराई से इस बात पर विचार करें तो पायेंगें कि इन धन्ना-सेठों का धर्मार्थ ट्रस्ट बनवाकर इन पवित्र कामों के लिए व्यय करना दो कारणों से ही काम में लाया जाता है तथा उन्हें ऐसे कामों को करना फायदे का धंधा ही

हिंसा

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  प्रत्येक सुबह-सवेरे हम दैनिक समाचार पत्र के पृष्ठ पलटते हैं तो वो हिंसा की तमाम ताज़ा ख़बरों से भरे रहते हैं. कहीं किसी को असमय गला घोंट कर मार डाला गया. कहीं किसी अकेले वृद्ध की घर पर हत्या कर दी गयी आदि. महात्मा गाँधी जी की अनमोल सीख यानि हिंसा छोड़ो, अहिंसा अपनाओ को देश के अधिकतर निवासी भुला बैठे हैं. क्या कभी किसी ने सोचा है कि अधिकतर मनुष्य हिंसक क्यों होते जा रहे हैं? इसके कई कारण हो सकते हैं लेकिन यहाँ हम मुख्य कारण जिससे हिंसा को बढ़ावा मिलता है वो सिने-निर्माताओं द्वारा जैसी फिल्मों का निर्माण किया जाता है जिसमें अधिक हिंसात्मक दृश्य दिखाए जाते हैं इन्हीं के कारण देश के लोग हिंसा में अधिक सक्रिय हो जाते हैं. जब देश के लोग इन निर्माताओं से प्रश्न करते हैं कि आप लोग तमाम सामाजिक विषयों पर फ़िल्में बनाते हैं तो उनमें हिंसा पर ही अधिक ध्यान क्यों केन्द्रित करते हैं. आपकी हिंसात्मक फिल्मो को देखकर देश का युवा वर्ग अपने असली जीवन में भी हिंसा को अपनाने लगता है. इसपर इन निर्माताओं का सीधा-सपाट उत्तर होता है कि हम अपनी फिल्मो में उसी कहानी को दिखाते हैं जो आजकल समाज में हो रहा है. इस

विवाह के एक वर्ष पश्चात

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  ससुराल में विवाह के एक वर्ष बीत जाने के बाद शादी की वर्षगाँठ बड़े धूमधाम से मनाई जाती है. इसमें वर पक्ष के सभी रिश्तेदार तथा बहू के मायके वालों को आमंत्रित किया जाता है. इसमें शामिल होने के लिए बहू के मायके वालों का बुलाया जाना भी एक अच्छा तथा स्वागत योग्य कदम होता है. बहू के मायके वाले अपनी बेटी के लिए एक अच्छा सा उपहार लेकर अपना आशीर्वाद देने के लिए आते हैं. अन्य रिश्तेदारों तथा मित्रों आदि को भी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर बड़े आदर-सत्कार से बुलाया जाता है. वे भी विभिन्न प्रकार के उपहार लेकर अपना आशीर्वाद देने आते हैं. शादी के बाद एक वर्ष बिताने के पश्चात विवाहिता को अपने पति तथा घर के अन्य सदस्यों के स्वभाव के बारे में पूरी तरह से पता चल चुका होता है. वो सबकी पसंद तथा नापसंद आदि के बारे में भी अच्छे से जान जाती है. वो अपने को उनके व्यवहार के अनुसार ढालने का प्रयत्न कर चुकी होती है. अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी को सफल बनाने का ये सबसे बड़ा मूलमंत्र है. परिवार को संयुक्त परिवार की तरह चलाना ही अच्छा होता है नाकि उसे तोड़कर एकल परिवार के रूप में चलाना. संयुक्त परिवार के अनेकों लाभ होते हैं. वि

भारत देश का एक ऐसा प्रदेश है जहाँ के मुद्दे भी रेलगाड़ी में सफ़र करते हैं

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By: Dennis Jarvis https://www.flickr.com/photos/archer10/   मैं आपको एक ऐसी घटना के बारे में बताना चाहता हूँ जो सरकारी नौकरी के दौरान कोलकाता, पश्चिम बंगाल में गठित हुई. यह बात 1987 की है. मैं अपने कार्यालय धर्मतल्ले में आने के लिए बैरकपुर से ट्रेन द्वारा स्यालदाह स्टेशन आ रहा था. उस ज़माने में भी ट्रेनों में काफी भीड़ हुआ करती थी. अचानक मैंने देखा कि किसी भद्र पुरुष की मृत्यु हो गयी थी तथा उसके मृत शरीर को बांस की तख्ती में बांधकर किसी तरह डिब्बे में खड़ा कर दिया गया. यह मेरे जीवन का एक विचित्र अनुभव था क्योंकि इसके पहले मैंने कभी भी किसी आदमी के मृत शरीर को ट्रेन में जाते नहीं देखा था. इस पर मैंने अपने सहयात्रियों से पुछा जो मुख्यतया बंगाली थे कि यहाँ ऐसा क्यों हो रहा है. उन लोगों ने बताया कि हम लोग बहुत गरीब हैं तथा हमारा घर एक गाँव में है वहां से किसी तरह इन्हें हम कोलकाता अंतिम संस्कार के लिए ले जा रहे हैं. यह हमारे जीवन का एक अनोखा अनुभव था जिसे मैं आप सभी से साझा करना चाहता हूँ.